भारत एक धार्मिक देश है । यह अपने रिती-रिवाजों के लिए प्रसिद्ध है । यहां सभी उत्सव का अपना अलग महत्व है । इसमें से एक जितीया व्रत या जिवितपुत्रिका व्रत भी है । इस व्रत का पालन मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार एवं झारखण्ड में किया जाता है । हिदुं पंचांग के अनुसार यह व्रत अश्विन माह के कृष्ण पक्ष के आठवें दिन किया जाता है । इस वर्ष अष्टमी दिनांक 17 सितंबर दोपहर 2 बजकर 14 मिनट से दिनांक 18 सितंबर दोपहर 4.32 मिनट तक रहेगा । यह व्रत ये व्रत माताएं अपने बच्चों के स्वास्थ्य, खुशहाली और लंबी आयु की कामना के लिए रखती हैं । यह व्रत आसान नही है । यह व्रत माताओं को बिना अन्न तथा पानी के करना होता है ।
इस व्रत में विशेष प्रकार की पूजा की जाती है । माताएं अष्टमी के दिन जितीया की पूजा किसी तालाब या जल स्रोत के किनारे करती हैं । विभिन्न प्रकार के फल, मिठाईयां, प्रसाद आदि भगवान को चढ़ाए जाते हैं । व्रत की संध्या माताएं किसी एक स्थान पर आकर व्रत के रिती-रिवाज करतीं हैं । वे एक साध धार्मिक गीत गाती हैं तथा इस व्रत से संबंधित आध्यात्मिक रिती-रिवाज को पूरा करती हैं । पूजा के दौरान जितीया नाम का धागा माताओं द्वारा उपयोग किया जाता है ।
व्रत के दूसरे दिन माताएं किसी जलाशय के किनारे सूर्य भगवान को अर्घ्य देतीं हैं । जीवित्पुत्रिका व्रत को रखने से पहले कुछ जगहों पर महिलाएं गेहूं के आटे की रोटियां खाने की बजाए मरुआ के आटे की रोटियां खाती हैं । इस व्रत में कुसी केराव का विशेष महत्व है । इस व्रत को रखने से पहले नोनी का साग खाने की भी परंपरा है । कहते हैं कि नोनी के साग में कैल्शियम और आयरन भरपूर मात्रा में होता है। जिसके कारण व्रती के शरीर को पोषक तत्वों की कमी नहीं होती है । इस व्रत के पारण के बाद महिलाएं जितिया का लाल रंग का धागा गले में पहनती हैं । व्रती महिलाएं जितिया का लॉकेट भी धारण करती हैं । पूजा के दौरान सरसों का तेल और खल चढ़ाया जाता है। व्रत पारण के बाद यह तेल बच्चों के सिर पर आशीर्वाद के तौर पर लगाते हैं ।