संयुक्त राष्ट्र यौन व प्रजनन स्वास्थ्य एजेंसी (UNFPA) के एक नए शोध के अनुसार, विकासशील देशों में महिलाओं की कुल संख्या की लगभग एक-तिहाई आबादी 19 वर्ष या उससे कम उम्र में बच्चों को माँ बनती हैं.
विश्व भर में, प्रजनन दर में गिरावट दर्ज की गई है. मगर, मगर यूएन एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार जो महिलाएँ किशोरावस्था में बच्चों को जन्म देती हैं, 40 वर्ष की उम्र होने तक वे क़रीब पाँच बच्चों को जन्म दे चुकी होती हैं.
ये आँकड़े वर्ष 2015 से 2019 की अवधि पर केन्द्रित विश्लेषण पर आधारित है.
प्रसव के दौरान होने वाली जटिलताएं, किशोरवय लड़कियों की मौत व उनके स्वास्थ्य को हानि पहुँचने का एक बड़ा कारण है.
इसके अलावा, किशोरावस्था में ही माँ बन जाने की वजह से उनके मानवाधिकारों का हनन होने और गम्भीर सामाजिक दुष्परिणाम होने का जोखिम भी बढ़ सकता है.
यूएन जनसंख्या कोष की कार्यकारी निदेशक डॉक्टर नतालिया कानेम ने कहा, “जब विकासशील देशों में कुल महिलाओं की लगभग एक तिहाई आबादी, किशोरावस्था में माँ बन रही हैं, तो यह स्पष्ट है कि दुनिया किशोर लड़कियों की सहायता करने में विफल हो रही है.”
“हम किशोरवय माताओं में बार-बार होने गर्भधारण को देखते हैं, जोकि इस बात का ज्वलंत सूचक है कि उन्हें हर हाल में जल्द से जल्द, यौन व प्रजनन स्वास्थ्य जानकारी व सेवाओं की आवश्यकता है.
रिपोर्ट बताती है कि पहला बच्चा होने के बाद, किशोरवय अवस्था में महिलाओं के और बच्चों का जन्म होना आम बात है.
जो लड़कियाँ पहली बार 14 वर्ष या उससे पहले की आयु में ही माँ बनती हैं, उनमें से तीन-चौथाई संख्या उनकी है, जिनके दूसरे बच्चे का जन्म भी किशोर उम्र में होता है.
40 प्रतिशत लड़कियाँ, किशोरावस्था पूरी होने से पहले ही तीसरे बच्चे की भी माँ बन जाती हैं.
इनमें बाल विवाह, अंतरंग साथी द्वारा हिंसा व अन्य मानसिक स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएँ हैं. सबसे कम उम्र में माँ बनने वाली लड़कियों के लिये जोखिम सबसे अधिक होता है.
प्रगति की सुस्त रफ़्तार
विश्व भर में, बचपन और किशोरावस्था में माँ बनने के मामलों में गिरावट आने के संकेत उत्साहजनक बताए गए हैं, लेकिन प्रगति की गति चिन्ताजनक ढँग से बहुत धीमी है.
यूएन एजेंसी प्रमुख ने ज़ोर देकर कहा, “सरकारों को किशोरवय लड़कियों के लिये निवेश करना होगा, और उनके लिये अवसरों, संसाधनों व कौशल में विस्तार करना होगा, ताकि कम उम्र में और अनचाहे गर्भधारण से बचा जा सके.”
उन्होंने कहा कि “जब लड़कियाँ अपने जीवन मार्ग को अर्थपूर्ण ढँग से स्वयं ही तय कर सकेंगी, तब बचपन में माँ बनने के मामले निरन्तर कम होते जाएंगे.”
यूएन जनसंख्या कोष ने हालात में बेहतरी लाने के इरादे से अपनी रिपोर्ट में नीतिनिर्धारकों के लिये अनेक अनुशंसाएँ भी प्रस्तुत की हैं.
इसके तहत, लड़कियों के लिये यौन शिक्षा, परामर्श, सामाजिक समर्थन सेवा की व्यवस्था की जानी होगी.
साथ ही, गुणवत्तापरक स्वास्थ्य सेवाएं, परिवारों को आर्थिक समर्थन व स्थानीय स्तर पर संगठनों के साथ सम्पर्क व सम्वाद स्थापित करना भी ज़रूरी होगा.
यूएन एजेंसी ने सचेत किया है कि इन सभी व्यवस्थाओं को एक ऐसी सामर्थ्यवान नीतिगत व कानूनी फ़्रेमवर्क के अन्तर्गत मुहैया कराया जाना होगा, जिसमें किशोरों की क्षमताओं, आवश्यकताओं व अधिकारों का ध्यान रखा जाए.