वर्चुअल वर्ल्ड से पूरी तरह दूरी बनाने को ही अर्थात टीवी स्क्रीन,स्मार्टफोन लैपटॉप से पूरी तरह दूरी बनाने को ही डिजिटल डिटॉक्स कहते हैं
इसमें व्यक्ति एक निश्चित वक्त के लिए पूरी तरह से ऑनलाइन दुनिया से दुरी बना लेते है
तकनीक का बहुत ज्यादा इस्तेमाल और बेचैनी के बीच संबंध है. ये मस्तिष्क में डोपामाइन रिलीज को प्रभावित करता है. आप जितना ज्यादा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करेंगे, उतना ही ज्यादा आप खुद को प्रोत्साहित महसूस करेंगे, जो मानसिक पीड़ा का कारण बनता है.
इन सब से राहत पाने के कारण ही डिजिटल डिटॉक्स की जरुरत होती है
आज ये कहना गलत नहीं होगा कि डिजिटल डिटॉक्स वक्त की जरूरत है। ज्यादातर लोग एकांतवास का शिकार हैं तनावग्रस्त रहे हैं. इसके पीछे कई कारण हैं मगर देखने में आया है कि तकनीक से अलगाव का सकारात्मक प्रभाव स्पष्ट पड़ा ह। नियमित डिजिटल डिटॉक्स नींद के पैटर्न में व्यापक सुधार ला सकता है. इससे आप भविष्य में स्वस्थ रह सकते हैं.
आपके फोकस में वृद्धि करता है डिजिटल डिटॉक्स उपकरण आपके ध्यान को अपनी तरफ आकर्षित कर लेते हैं. किसी अन्य जगह पर फोकस करने मुश्किल से समय बच पाता है. स्क्रीन की रोशनी की मांग फूड के मुकाबले ज्यादा होती है. इसलिए जबतक हम डिजिटल उपकरण से ब्रेक न लें, हमें कभी नहीं पता चलेगा कि हम अपनी जिंदगी को कैसे तबाह कर रहे हैं. डिजिटल डिटॉक्स से ध्यान लगाने में मदद मिलेगी और आपको एहसास होगा कि सेट पर देखने के बजाए कई ऐसी गतविधियां हैं जिनको आप पसंद कर सकते हैं.
महाराष्ट्र (Maharashtra) का एक गांव सुर्खियों में है। यहां शाम के 7 बजे एक सायरन बजता है. जिसकी आवाज सुनते ही लोग अपने मोबाइल फोन, टेलीविजन सेट और दूसरे गैजेट्स को 90 मिनट तक फौरन बंद कर लेते हैं.महाराष्ट्र के सांगली जिले स्थित मोहित्यांचे वडगांव गांव ने अपने लोगों को इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स और सोशल मीडिया की लत से होने वाली बीमारियों से बचाने का नायाब तरीका निकाला है. कुछ लोगों की मुहिम से शुरू हुआ डिजिटल डिटॉक्सिंग प्रोग्राम गांव के घर-घर में बेहद लोकप्रिय है, जिसका पालन पूरी कड़ाई के साथ होता है.
गांव के मंदिर से हर शाम को 7 बजे एक सायरन बजता है. जो इस बात का संकेत देता है कि सभी लोग फौरन अपने मोबाइल फोन, टीवी और अन्य गैजेट्स का इस्तेमाल बंद करके रख दें.यह प्रस्ताव गांव के सरपंच विजय मोहिते ने रखा था